जज़्बात
मन के भाव, शिकवे और मुहब्बत के अनेक रंग मिलकर एक नये कलेवर की रचना करते है, जिन्हें मैं जज़्बात के नाम से जानती हूँ |इन्ही जज्बातों को समेटे आपसे रू-ब-रू हूँ |
गुरुवार, 15 जनवरी 2015
जज़्बात : वचन कोशिश के होते हैं नतीजों के नहीं होते
जज़्बात : वचन कोशिश के होते हैं नतीजों के नहीं होते: परिंदे आसमानों के दरीचों के नहीं होते , चमन में रहके भी कुछ गुल बगीचों के नहीं होते| तुम्हें कैसे वचन दूँ चाँद को बाँहों में ला दूंगी ,...
बुधवार, 14 जनवरी 2015
जज़्बात : हिन्द में हिन्दी असुरक्षित क्यूँ
जज़्बात : हिन्द में हिन्दी असुरक्षित क्यूँ: चेतन भगत से आप सभी भली भांति परिचित हैं इनका परिचय देने की आवश्यकता नहीं है |फिर भी जो नहीं जानते उनके लिए बता दूँ कि ये नामी लेखक चेत...
हिन्द में हिन्दी असुरक्षित क्यूँ
चेतन भगत से आप सभी
भली भांति परिचित हैं इनका परिचय देने की आवश्यकता नहीं है |फिर भी जो नहीं जानते
उनके लिए बता दूँ कि ये नामी लेखक चेतन भगत हैं “हाफ गर्लफ्रेंड” , “द थ्री
मिस्टेक्स ऑफ़ माय लाइफ” , “वन नाईट एट द कॉल सेंटर” के साथ ही कई किताबों के लेखक
| इनका कथन है “रोमन लिपि को अपनाकर हिन्दी को बचा सकते हैं” | इनके इस कथन ने मेरे मन में कुछ प्रश्नों को जन्म दिया ,मैं इनसे (और सभी
से) ये प्रश्न पूछना चाहती हूँ कि जब ये स्वयं इनके अनुसार हिन्दी प्रेमी हैं तो क्या
हिन्दी प्रेमी होने के नाते इनका दायित्व हिन्दी भाषा के प्रयोग को बढ़ावा देना नहीं
है ? या हम इन्हें रोमन लिपि प्रेमी कह सकते हैं | क्या ये हिन्दी के सौन्दर्य में
मिलावट करके उसे अशुद्ध करना नहीं होगा? हिन्दी स्वयं में एक पूर्ण भाषा है इसे
बोलने लिखने या समझने के लिए किसी सहायक भाषा की कोई आवश्यकता नहीं है| बेशक रोमन
लिपि का प्रयोग whatsapp, facebook और मेसेजिंग में किया जा रहा है परन्तु चेतन जी
ये बताएं कि क्या whatsapp और facebook में रोमन लिपि का उपयोग हिन्दी के महत्व को निर्धारित करेगा या
हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहित कर सकेगा | हम बात करते हैं शिक्षा के क्षेत्र
में हिन्दी का प्रभुत्व हो , रोज़गार के क्षेत्र में हिन्दी को वरीयता मिले ,
मेडिकल की पढ़ाई से लेकर दवाओं के नाम तक हिन्दी में लिखे हों , ये इसीलिए कि
हिन्दी समझने में आसान है, क्या रोमन लिपि यहाँ और समस्याएं नहीं खड़ी कर देगी या
देश केवल whatsapp और facebook के सहारे ही चल रहा है |
मेरा प्रश्न ये भी है
क्यूँ हिन्दी भाषा के मूल रुप के साथ प्रयोग किये जा रहे हैं क्यूँ उसे रोमन लिपि
की आवश्यकता पड़े| क्यूँ हिन्दी को उसके मूल रूप में नहीं अपनाया जा सकता | हिन्दी सम्पूर्ण
भाषा है जिसे समझने के लिए सुधार की या सहायक भाषाओँ की आवश्यकता कतई नहीं है|
वक़्त के साथ बदलने का अर्थ ये
नहीं कि एक का अस्तित्व और महत्व समाप्त करके दूसरे को स्थापित कर दिया जाए |आज
हिन्दी भाषा व हिन्दी भाषा प्रेमी अपने अस्तित्व और सम्मान को पुनः पाने के लिए
पहले ही बहुत परिश्रम कर रहे हैं ऐसे में रोमन लिपि भी हिन्दी भाषा के लिए एक संकट
ही है |
भारत हिन्दी भाषी देश है और यहाँ बोले जाने वाली
भाषाएँ हिन्दी का ही अंग हैं | अंग्रेज़ी भाषा की लिपि बिलकुल अलग है और अंग्रेज़ी
ने हिन्दी भाषा के लिए अपना ही स्थान असुरक्षित कर दिया हमने कहा इसका कारण शिक्षा
और कैरियर में अंग्रेज़ी की मांग है , लोगों को यहाँ पढ़ लिखकर पैसा कमाने के लिए
विदेशों की सेवायें करनी थीं | हिन्दी को मातृभाषा का स्थान मिला किन्तु आज हिन्द
में हिन्दी असुरक्षित है |अंग्रेज़ी का सत्तावादी रुख हिन्दी के पतन का कारण बन रहा
है , कुछ मुट्ठी भर लोग हिन्दी को उसका अधिकार दिलाने के लिए जी जान से प्रयासरत
हैं भी किन्तु संभवतः ये पर्याप्त कभी नहीं हो सकते | यहाँ मैं ये भी कहना चाहती
हूँ कि बदलाव का नियम हर जगह सामान रूप से लागू नहीं होता| क्या हम ये करें कि अगर
भूगोल की दृष्टि से देश को समझने में कठिनाई हो रही है तो हमें सारे पर्वत पहाड़ों
को काटकर समुद्र में डाल देना चाहिए ताकि एकरूपता आ जाए , सारे फूल एक रंग के कर
दिए जायें, सभी वृक्षों का आकार प्रकार एक सा हो तो समझने में आसानी होगी | यदि ये
संभव और आवश्यक नहीं तो हिन्दी भाषा के साथ खिलवाड़ भी न तो आवश्यक है और न ही संभव
होगा |
हिन्दी का अस्तित्व और सम्मान बनाये रखना
, हिन्दी के प्रयोग को प्रोत्साहित करना प्रत्येक हिन्दुस्तानी का देश के प्रति
प्रथम कर्तव्य तो है ही ज़िम्मेदारी भी है | इसमें समाज के ज़िम्मेदार और नामी वर्ग
से अधिक युवाओं से आशा हैं |
गुरुवार, 1 जनवरी 2015
जो तुम न होते
जो तुम न होते
कौन जीवन के कागज़ पर
संबंधों की रूप रेखा उकेरता
मैं और तुम
इन दो रंगों को सतरंगी करता
आत्मसम्मान के घर बनाता
नियंत्रण के अडिग पेड़ पर
समर्पण की लताएं चढ़ाता
स्मित के नव पुष्प खिलाता
जो तुम न होते
साहस के सूरज कौन उगाता
दृढ़ता के पर्वतों से
नेह की सरिता कौन बहाता
कौन निश्चय की नाव को
गंतव्य की दिशा दिखाता
जो तुम न होते
कौन मुझ अधीर को गढ़ता
धीर की धरा पर
अटल प्रस्तर बनाता
जो तुम न होते
तो होता कुछ अनगढ़ा
रंगहीन दिशा से विलग
और आकृतिहीन जीवन
जो तुम हो
तो संभावनाओं के आकाश पर
निडर हो उड़ रहे हैं
प्रयासों के पंछी
विश्वास है कि
जो ये चित्र तुमने गढ़ा है मेरे जीवन का
पंछियों को गंतव्यों पर ही
मिलेगा विराम
कौन जीवन के कागज़ पर
संबंधों की रूप रेखा उकेरता
मैं और तुम
इन दो रंगों को सतरंगी करता
आत्मसम्मान के घर बनाता
नियंत्रण के अडिग पेड़ पर
समर्पण की लताएं चढ़ाता
स्मित के नव पुष्प खिलाता
जो तुम न होते
साहस के सूरज कौन उगाता
दृढ़ता के पर्वतों से
नेह की सरिता कौन बहाता
कौन निश्चय की नाव को
गंतव्य की दिशा दिखाता
जो तुम न होते
कौन मुझ अधीर को गढ़ता
धीर की धरा पर
अटल प्रस्तर बनाता
जो तुम न होते
तो होता कुछ अनगढ़ा
रंगहीन दिशा से विलग
और आकृतिहीन जीवन
जो तुम हो
तो संभावनाओं के आकाश पर
निडर हो उड़ रहे हैं
प्रयासों के पंछी
विश्वास है कि
जो ये चित्र तुमने गढ़ा है मेरे जीवन का
पंछियों को गंतव्यों पर ही
मिलेगा विराम
मंगलवार, 11 नवंबर 2014
परदेसी साजनवा
का खोये का पाये हो परदेस में जाके साजनवा ,
लगते अऊर पराये हो परदेस में जाके साजनवा ।
याद करे हैं तुमको गाँव के बछड़े नदिया खेत हवा ,
तुम तो सब बिसराये हो परदेस में जाके साजनवा ।
यहाँ तो हर एक बच्चा बूढा नाम तुम्हारे जाने है ,
ठेंगा नाम कमाये हो परदेस में जाके साजनवा ।
सूट बूट अंगरेजी कपडे और विदेसी गाड़ी भी,
झूठा मान सजाये हो परदेस में जाके साजनवा ।
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